Wednesday, July 29, 2009

एक जोड़ी चप्पल

एक जोड़ी चप्पल
- संजय चंदवाड़ा
चार फुट चौड़े और करीब 6 फुट लंबे हिंदुस्तानी टॉयलेट में बैठी पवी लघु शंका से निर्वित होकर जैसे उठी उसे लगा जैसे कोई उसे देखा रहा है। उसने एकदम पीछे मुड़ के खिड़की पर देखा तो, खिड़की बंद थी। पर जब उसने अपनी खड़की खोलकर देखा तो सामने वाले फ्लैट की टॉयलेट की खिड़की खुली थी। अब उसने ये मान लिया कि हो ना हो कोई उसे देख रहा था।
दरवाजा पटकते हुए गुस्से से बाहर निकली और साथ बने बाथरूम में औपचारिकता स्वरूप हाथ धोने लगी। हाथ पोंछते-पोंछते गुस्सा हाथ के पानी की तरह सूखने लगा था, शायद अब उसे एहसास हो गया था कि जब उसकी खिड़की बंद थी और सामने वाले फ्लैट से कोई उसे कैसे देख सकता है। फिर उसने सोचा, यार होना हो गलती से किसी दिन मेरी खिड़की खुली रह गई तो कोई भी मुझे वहां से देख सकता है। वह फिर टॉयलेट में गई और अपनी खिड़की कसके बंद कर दी। और अब जब भी वह टॉयलेट में जाती तो खिड़की का हैंडल जरूर हिलाकर देखती... शायद वो खिड़की को और कसके बंद करना चाहती है ताकी जरा सी झिर्री तक में से उस कोई देख ना पाए। वैसे भी अगर कोई उसे देखने की कोशिश भी करे तो उसके चंद बालों के सिवा कुछ नहीं दिखाई देगा ।
अब समझा जा सकता है कि पवी अपने आप को कितनी सुरक्षा में रखती है। अकेली रहती है। एक कमरा, एक किचन, दो खिड़कियां, एक दरवाजा, बाथरूम और टॉयलेट के बारे में तो आप जानते ही है। हां दरवाजे से याद आया। दरवाजें दो हैं। एक लकड़ी का और एक लोहे का। सुरक्षा..। मुंबई है बाबा, यहां ताज होटल पर हमला हो जाता है तो ताज बिल्डिंग में क्या नहीं हो सकता है। ऊपर से अकेली रहती है। लड़की और है। लड़की भी जवान। ताज... हां... आठ माले की इस बिल्डिगं का नाम ताज है। करीब 160 फ्लैट होंगे। छठे माले में रहने वाली पवी, मूलरूप से कर्नाकट की है। इसे जितनी फिक्र अपनी रहती है, उतनी ही अपनी बिल्डिंग की या फिर यूं कहे कि बिल्डिंग में रहने वालों की।
सच यह है कि उसे कोई नोटिस नहीं करता और वो कुछ ऐसा करती भी नहीं कि कोई उसे नोटिस करे। और ना ही वह किसी के फटे में टांग अड़ाती है। बावजूद इसके उसे हर दरवाजे में झाकने की आदत है, और कहीं-कहीं उसकी फ्लोर वालों को भी उसके बारे में कुछ भी जानने में दिलचस्पी रहती है।
पड़ोस वाली आंटी हो या अंकल। बायीं तरफ रहने वाली भाभी हो या भैया। या फिर सामने चलने वाला ट्यूशन सेंटर। सामने ही दूसरी और रहने वाला एक नया जोड़ा जिसके बारे में ना तो पवी जानती है और ना ही बिल्डिंग के दूसरे लोग। बस एक महीना ही हुआ है इस जोड़े को यहां रहते हुए। कुछ तो बात है इस जोड़े जिसके बारे पूरी बिल्डिंग जानना चाहती है। असल में इस बिल्डिंग में निम्न मध्यम परिवार से लेकर उच्च मध्यम से ताल्लुक रखने वाले लोग रहते हैं। कहा जाए तो मिला जुला क्राउड। लोवर मिडिल क्लास ज्यादा है। आखिर ये इमारत उनकी झुग्गी झोपड़ी तोड़कर ही बनी है। जिसके बदले उन्हें एक एक कमरे का पक्का फ्लैट मिल गया और बाकि बिल्डर का मुनाफा। तो इस बिल्डिंग में तमाम खाते-पीते किराए पर रहते है, पवी और सामने वाला जोड़ा कुछ ऐसे ही क्राउड का हिस्सा है।
पवी पहले कभी ऐसी जगह नहीं रही है। कर्नाटकर में बड़ा आलिशान घर है। कॉलेज या कहीं और रही तो भी बड़े बड़े घर में। मुंबई की बात ही कुछ और है यहां रहने की जगह मात्र होनी चाहिए स्टैडंर्ड कुछ ज्यादा माइने नहीं रखता बशर्ते एरिया अच्छा होना चाहिए। अब मुंबई में जुहू से अच्छा एरिया ढूंढने निकलोगे तो...। तो जाने दो। इतना ही काफी है कि अमिताभ बच्चन भी जुहू में रहते हैं।
कभी डे तो कभी नाइट शिफ्ट में काम करने वाली पवी को बिल्डिंग का व्यवहारिक भूगोल कुछ ज्यादा ही मालूम है। कब कितने बजे क्या होता है। सूरज की कीरणें कैसे, और फिर कहां, किस हिसाब से पड़ती हैं, उसे सब मालूम है।
दोपरह के करीब चार बजे है। आज पवी ने लकड़ी का दरवाजा खोला और लोहे के दरवाजे को बिना खोले ही ऊपर खिड़की से दायीं और फिर बायीं तरफ देखा। दायी तरफ सामने वाली दीवार के एकदम नीचे फर्श पर कुछ देर देखकर उसने दरवाजा बंद किया और मन ही मन में बड़बड़ाई। आज कौन नहीं आया। एक जोड़ा गायब है। एक जोड़ा चप्पल। रोज तो पूरे दस जोड़े होते हैं फिर आज नौ ही क्यों। उसने ऐसा बिल्कुल नहीं सोचा कि एक बार और झांक ले, क्या पता एक आधा जोड़ा इधर-उधर कहीं किसी बच्चे ने उतार दिया हो। क्योंकि उसे मालूम है ऐसा हो ही नहीं सकता। जितनी सलीके से बच्चे इस ट्यूशन सेंटर के बाहर चप्पलें उतारते हैं उतने सलीके से अगर लोग मंदिर में उतारे तो प्रांगण देखकर भगवान बहुत खुश हो जाएंगे ।
खैर वह थोड़ी देर अपने आप को किसी काम व्यस्त रखती है पर फिर से उसे चप्पल का एक कम जोड़ा सताने लगता है। वो जब भी कभी इस वक्त घर पर होती है तो लाइन मे तरीके से लगी चप्पले देख कर बहुत रिलेक्स फील करती है। और मन ही मन ही बोलती है, what a discipline! फिर आज एक जोड़ा कम क्यों हैं। उससे रहा नहीं जाता। वो फिर दरवाजा खोलती और कमरे में बैठे बच्चों को गिनना शुरू करती है। पर कुछ बच्चे कोने में बैठे होने की वजह दिखते नहीं। एक बार सोचती है छोड़ो ना यार क्या फर्क पड़ता है। एक जोड़ा कम हो या ज्यादा हो। पर फिर सोचती है ऐसा पहले तो कभी हुआ नहीं फिर आज ही ऐसा ही क्यों हो रहा है। उससे रहा नहीं जाता है। वह टहलने के मूड में बाहर निकलती है। दरवाजे को हल्के से बंद करती है। अपने बायीं और थोड़ा चलती है, ताकी कोने में बैठे बच्चे दिखाई दें और वो गिन सके। पवी बच्चे गिन लेती है तो और भी आश्चर्य में पड़ जाती है, कि बच्चे तो पूरे दस है फिर चप्पल कहां गई।
यही सोचते सोचते वह अंदर अपने फ्लैट में आ जाती है। सोचती है कि आखिर एक जोड़ी चप्पलें कहां गईं जबकि बच्चे तो पूरे दस है। पवी के फोन की घंटी बजती है। फोन पर कुछ देर बात करती है तो गायब हुआ चप्पलों का जोड़ा थोड़ी देर उसके दिमाग से भी गायब रहता है। वह अब तैयार होने लगती है, क्योंकि उसकी टैक्सी (कैब) आने वाली है। वह जल्दी से तैयार होती है बैग उठाती है और फुर्ती से ताला लगाते हुए पलटती है और नजरे फिर चप्पलों की लाइन पर। वह लगे हुए ताले को फिर खोलती है और फिर लगाती है... और मन ही मन में... एक दो तीन... आठ नौ..। अब झट से ताला बंद करते हुए वह लिफ्ट की ओर चलने लगती है। लिफ्ट तक करीब 80 कदमों की दूरी तय करने तक में वह तीन बार पीछे मुड़ कर चप्पलों की कतार को देखती हैं। लिफ्ट आ गई है वह नीचे उतर चुकी है और अब कैब में भी बैठ चुकी पर अब भी उसके दीमाग में दस बच्चें, और नौ चप्पल जोड़ा ही घूम रहे हैं।
अगले दिन फिर वही। वह झांक कर देखती है।“ एक दो... तीन... आठ नौ.। आज कौन नहीं आया देखती हूं”। पवी फिर उस कोने में छुपे बच्चों को गिनने के मूड में बाहर नहीं निकलती है और पाती है कि आज भी दस बच्चे पर चप्पले नौ ही क्यों। अंदर आती है, थोड़ी देर टेलीविज़न देखती है ताकी चप्पलें दीमाग से निकले। पर निकल नहीं पाती है। वह फिर से घर से बाहर निकलती है। बच्चों के चेहरे पहचानने कोशिश करती है और गिनती है। पूरे दस। चक्कर क्या है। उसे कुछ समझ नहीं में आता है।
वह तैयार होने लगती है, कैब आने का वक्त हो चुका है। वह रोजाना की तरह फिर जल्दी में ताला लगाती है। गायब हुए चप्पलों के जोड़े से बचने के लिए वह बिल्कुल उस कतार की तरफ नहीं देखती सीधे लिफ्ट की तरफ जाती है। लिफ्ट आती है, रुकती है। पर वह दरवाजा नहीं खोलती और लिफ्ट में थोड़ी सी देर में चली जाती है। वह वापस आती है धीरे धीरे चप्पलों की कतार की तरफ देखती हुई आगे बढ़ती है। एक दो तीन... आठ, नौ। वह फुर्ती से पीछे मुड़ती है। लिफ्ट का बटन दबाती है लिफ्ट तुरंत आती है। वह तेजी से कैब में बैठती है। पर इतनी तेजी में भी चप्पलों की कतार उसके ज़हन से निकलती नहीं है।
आज तीसरा दिन है। वह फिर देखती है। चप्पले उसी शान ओ शौकत के साथ लाइन में लगी हैं। बच्चे पढ़ाई में लगे हुए है। पवी इस बार चप्पले नहीं गिनती बल्कि बाहर निकल कर कोने तक बच्चे गिनते हुए अपने घर में घुसती है और फिर चप्पलों की कतार में लगी जोड़ों की गिनती है। आज भी वहीं गड़बड़ नौ जोड़े चप्पले और दस बच्चे। आज पवी का ऑफ है। आज वह देख कर मानेगी कि आखिर बात है। वह तैयार है। बच्चों की छुट्टी होने का इंतजार कर रही है। इस बीच है कोई दस बार दरवाजे से झांक चुकी है कि छुट्टी हुई है या नहीं। वह कोई मौका नहीं देना चाहती। छुट्टी होने वाली है। वह बार बार दरवाजे पर पहुंचती है। उसे आवाज आने लगती है, बाय दीदी, बाय टीचर, बाय सिस्टर....। वह दरवाजे की तरफ दौड़ पहुंचती है। जैसे ही दरवाजे निकलते बच्चे और चप्पल की कतार पर ध्यान लगाती है, फोन बज उठता है। वह फोन उठाती है और कान पर लगाती हुई सिर्फ इतना ही कहती है, विल कॉल यू बैक। दरवाजे पर फिर पहुंचती है देखती है, आखिरी बच्चा कतार में आखिरी बच्ची चप्पलें पहन के दौड़ता हुआ लिफ्ट की ओर भागता है।