Wednesday, July 29, 2009

एक जोड़ी चप्पल

एक जोड़ी चप्पल
- संजय चंदवाड़ा
चार फुट चौड़े और करीब 6 फुट लंबे हिंदुस्तानी टॉयलेट में बैठी पवी लघु शंका से निर्वित होकर जैसे उठी उसे लगा जैसे कोई उसे देखा रहा है। उसने एकदम पीछे मुड़ के खिड़की पर देखा तो, खिड़की बंद थी। पर जब उसने अपनी खड़की खोलकर देखा तो सामने वाले फ्लैट की टॉयलेट की खिड़की खुली थी। अब उसने ये मान लिया कि हो ना हो कोई उसे देख रहा था।
दरवाजा पटकते हुए गुस्से से बाहर निकली और साथ बने बाथरूम में औपचारिकता स्वरूप हाथ धोने लगी। हाथ पोंछते-पोंछते गुस्सा हाथ के पानी की तरह सूखने लगा था, शायद अब उसे एहसास हो गया था कि जब उसकी खिड़की बंद थी और सामने वाले फ्लैट से कोई उसे कैसे देख सकता है। फिर उसने सोचा, यार होना हो गलती से किसी दिन मेरी खिड़की खुली रह गई तो कोई भी मुझे वहां से देख सकता है। वह फिर टॉयलेट में गई और अपनी खिड़की कसके बंद कर दी। और अब जब भी वह टॉयलेट में जाती तो खिड़की का हैंडल जरूर हिलाकर देखती... शायद वो खिड़की को और कसके बंद करना चाहती है ताकी जरा सी झिर्री तक में से उस कोई देख ना पाए। वैसे भी अगर कोई उसे देखने की कोशिश भी करे तो उसके चंद बालों के सिवा कुछ नहीं दिखाई देगा ।
अब समझा जा सकता है कि पवी अपने आप को कितनी सुरक्षा में रखती है। अकेली रहती है। एक कमरा, एक किचन, दो खिड़कियां, एक दरवाजा, बाथरूम और टॉयलेट के बारे में तो आप जानते ही है। हां दरवाजे से याद आया। दरवाजें दो हैं। एक लकड़ी का और एक लोहे का। सुरक्षा..। मुंबई है बाबा, यहां ताज होटल पर हमला हो जाता है तो ताज बिल्डिंग में क्या नहीं हो सकता है। ऊपर से अकेली रहती है। लड़की और है। लड़की भी जवान। ताज... हां... आठ माले की इस बिल्डिगं का नाम ताज है। करीब 160 फ्लैट होंगे। छठे माले में रहने वाली पवी, मूलरूप से कर्नाकट की है। इसे जितनी फिक्र अपनी रहती है, उतनी ही अपनी बिल्डिंग की या फिर यूं कहे कि बिल्डिंग में रहने वालों की।
सच यह है कि उसे कोई नोटिस नहीं करता और वो कुछ ऐसा करती भी नहीं कि कोई उसे नोटिस करे। और ना ही वह किसी के फटे में टांग अड़ाती है। बावजूद इसके उसे हर दरवाजे में झाकने की आदत है, और कहीं-कहीं उसकी फ्लोर वालों को भी उसके बारे में कुछ भी जानने में दिलचस्पी रहती है।
पड़ोस वाली आंटी हो या अंकल। बायीं तरफ रहने वाली भाभी हो या भैया। या फिर सामने चलने वाला ट्यूशन सेंटर। सामने ही दूसरी और रहने वाला एक नया जोड़ा जिसके बारे में ना तो पवी जानती है और ना ही बिल्डिंग के दूसरे लोग। बस एक महीना ही हुआ है इस जोड़े को यहां रहते हुए। कुछ तो बात है इस जोड़े जिसके बारे पूरी बिल्डिंग जानना चाहती है। असल में इस बिल्डिंग में निम्न मध्यम परिवार से लेकर उच्च मध्यम से ताल्लुक रखने वाले लोग रहते हैं। कहा जाए तो मिला जुला क्राउड। लोवर मिडिल क्लास ज्यादा है। आखिर ये इमारत उनकी झुग्गी झोपड़ी तोड़कर ही बनी है। जिसके बदले उन्हें एक एक कमरे का पक्का फ्लैट मिल गया और बाकि बिल्डर का मुनाफा। तो इस बिल्डिंग में तमाम खाते-पीते किराए पर रहते है, पवी और सामने वाला जोड़ा कुछ ऐसे ही क्राउड का हिस्सा है।
पवी पहले कभी ऐसी जगह नहीं रही है। कर्नाटकर में बड़ा आलिशान घर है। कॉलेज या कहीं और रही तो भी बड़े बड़े घर में। मुंबई की बात ही कुछ और है यहां रहने की जगह मात्र होनी चाहिए स्टैडंर्ड कुछ ज्यादा माइने नहीं रखता बशर्ते एरिया अच्छा होना चाहिए। अब मुंबई में जुहू से अच्छा एरिया ढूंढने निकलोगे तो...। तो जाने दो। इतना ही काफी है कि अमिताभ बच्चन भी जुहू में रहते हैं।
कभी डे तो कभी नाइट शिफ्ट में काम करने वाली पवी को बिल्डिंग का व्यवहारिक भूगोल कुछ ज्यादा ही मालूम है। कब कितने बजे क्या होता है। सूरज की कीरणें कैसे, और फिर कहां, किस हिसाब से पड़ती हैं, उसे सब मालूम है।
दोपरह के करीब चार बजे है। आज पवी ने लकड़ी का दरवाजा खोला और लोहे के दरवाजे को बिना खोले ही ऊपर खिड़की से दायीं और फिर बायीं तरफ देखा। दायी तरफ सामने वाली दीवार के एकदम नीचे फर्श पर कुछ देर देखकर उसने दरवाजा बंद किया और मन ही मन में बड़बड़ाई। आज कौन नहीं आया। एक जोड़ा गायब है। एक जोड़ा चप्पल। रोज तो पूरे दस जोड़े होते हैं फिर आज नौ ही क्यों। उसने ऐसा बिल्कुल नहीं सोचा कि एक बार और झांक ले, क्या पता एक आधा जोड़ा इधर-उधर कहीं किसी बच्चे ने उतार दिया हो। क्योंकि उसे मालूम है ऐसा हो ही नहीं सकता। जितनी सलीके से बच्चे इस ट्यूशन सेंटर के बाहर चप्पलें उतारते हैं उतने सलीके से अगर लोग मंदिर में उतारे तो प्रांगण देखकर भगवान बहुत खुश हो जाएंगे ।
खैर वह थोड़ी देर अपने आप को किसी काम व्यस्त रखती है पर फिर से उसे चप्पल का एक कम जोड़ा सताने लगता है। वो जब भी कभी इस वक्त घर पर होती है तो लाइन मे तरीके से लगी चप्पले देख कर बहुत रिलेक्स फील करती है। और मन ही मन ही बोलती है, what a discipline! फिर आज एक जोड़ा कम क्यों हैं। उससे रहा नहीं जाता। वो फिर दरवाजा खोलती और कमरे में बैठे बच्चों को गिनना शुरू करती है। पर कुछ बच्चे कोने में बैठे होने की वजह दिखते नहीं। एक बार सोचती है छोड़ो ना यार क्या फर्क पड़ता है। एक जोड़ा कम हो या ज्यादा हो। पर फिर सोचती है ऐसा पहले तो कभी हुआ नहीं फिर आज ही ऐसा ही क्यों हो रहा है। उससे रहा नहीं जाता है। वह टहलने के मूड में बाहर निकलती है। दरवाजे को हल्के से बंद करती है। अपने बायीं और थोड़ा चलती है, ताकी कोने में बैठे बच्चे दिखाई दें और वो गिन सके। पवी बच्चे गिन लेती है तो और भी आश्चर्य में पड़ जाती है, कि बच्चे तो पूरे दस है फिर चप्पल कहां गई।
यही सोचते सोचते वह अंदर अपने फ्लैट में आ जाती है। सोचती है कि आखिर एक जोड़ी चप्पलें कहां गईं जबकि बच्चे तो पूरे दस है। पवी के फोन की घंटी बजती है। फोन पर कुछ देर बात करती है तो गायब हुआ चप्पलों का जोड़ा थोड़ी देर उसके दिमाग से भी गायब रहता है। वह अब तैयार होने लगती है, क्योंकि उसकी टैक्सी (कैब) आने वाली है। वह जल्दी से तैयार होती है बैग उठाती है और फुर्ती से ताला लगाते हुए पलटती है और नजरे फिर चप्पलों की लाइन पर। वह लगे हुए ताले को फिर खोलती है और फिर लगाती है... और मन ही मन में... एक दो तीन... आठ नौ..। अब झट से ताला बंद करते हुए वह लिफ्ट की ओर चलने लगती है। लिफ्ट तक करीब 80 कदमों की दूरी तय करने तक में वह तीन बार पीछे मुड़ कर चप्पलों की कतार को देखती हैं। लिफ्ट आ गई है वह नीचे उतर चुकी है और अब कैब में भी बैठ चुकी पर अब भी उसके दीमाग में दस बच्चें, और नौ चप्पल जोड़ा ही घूम रहे हैं।
अगले दिन फिर वही। वह झांक कर देखती है।“ एक दो... तीन... आठ नौ.। आज कौन नहीं आया देखती हूं”। पवी फिर उस कोने में छुपे बच्चों को गिनने के मूड में बाहर नहीं निकलती है और पाती है कि आज भी दस बच्चे पर चप्पले नौ ही क्यों। अंदर आती है, थोड़ी देर टेलीविज़न देखती है ताकी चप्पलें दीमाग से निकले। पर निकल नहीं पाती है। वह फिर से घर से बाहर निकलती है। बच्चों के चेहरे पहचानने कोशिश करती है और गिनती है। पूरे दस। चक्कर क्या है। उसे कुछ समझ नहीं में आता है।
वह तैयार होने लगती है, कैब आने का वक्त हो चुका है। वह रोजाना की तरह फिर जल्दी में ताला लगाती है। गायब हुए चप्पलों के जोड़े से बचने के लिए वह बिल्कुल उस कतार की तरफ नहीं देखती सीधे लिफ्ट की तरफ जाती है। लिफ्ट आती है, रुकती है। पर वह दरवाजा नहीं खोलती और लिफ्ट में थोड़ी सी देर में चली जाती है। वह वापस आती है धीरे धीरे चप्पलों की कतार की तरफ देखती हुई आगे बढ़ती है। एक दो तीन... आठ, नौ। वह फुर्ती से पीछे मुड़ती है। लिफ्ट का बटन दबाती है लिफ्ट तुरंत आती है। वह तेजी से कैब में बैठती है। पर इतनी तेजी में भी चप्पलों की कतार उसके ज़हन से निकलती नहीं है।
आज तीसरा दिन है। वह फिर देखती है। चप्पले उसी शान ओ शौकत के साथ लाइन में लगी हैं। बच्चे पढ़ाई में लगे हुए है। पवी इस बार चप्पले नहीं गिनती बल्कि बाहर निकल कर कोने तक बच्चे गिनते हुए अपने घर में घुसती है और फिर चप्पलों की कतार में लगी जोड़ों की गिनती है। आज भी वहीं गड़बड़ नौ जोड़े चप्पले और दस बच्चे। आज पवी का ऑफ है। आज वह देख कर मानेगी कि आखिर बात है। वह तैयार है। बच्चों की छुट्टी होने का इंतजार कर रही है। इस बीच है कोई दस बार दरवाजे से झांक चुकी है कि छुट्टी हुई है या नहीं। वह कोई मौका नहीं देना चाहती। छुट्टी होने वाली है। वह बार बार दरवाजे पर पहुंचती है। उसे आवाज आने लगती है, बाय दीदी, बाय टीचर, बाय सिस्टर....। वह दरवाजे की तरफ दौड़ पहुंचती है। जैसे ही दरवाजे निकलते बच्चे और चप्पल की कतार पर ध्यान लगाती है, फोन बज उठता है। वह फोन उठाती है और कान पर लगाती हुई सिर्फ इतना ही कहती है, विल कॉल यू बैक। दरवाजे पर फिर पहुंचती है देखती है, आखिरी बच्चा कतार में आखिरी बच्ची चप्पलें पहन के दौड़ता हुआ लिफ्ट की ओर भागता है।

Saturday, February 7, 2009

क्या यही प्यार है?

velentins day spl.
क्या यही प्यार है?
by: sanjay k chandwara

बदलते दौर में क्या भावनाएं भी बदल गईं हैं। या फिर शून्य हो गई हैं। जाहिर सी बात है भावानएं नहीं है तो प्रेम भी नहीं है। क्यूंकि प्रेम का संबंध भौतिकता से नहीं बल्कि मन की सबसे पवित्र स्थिति से है। करियर, पैसा, पोजीशन भी जरूरी है, पर क्या यें भावनाओं से लड़ पाएंगे। शायद, इसका जवाब इस कहानी के आखरी पन्ने पर मिल जाए।
ज़ैद एक ऐसा लड़का है जिसे हर दिशा में, हर अवस्था में सिर्फ पैसा, पोजिशन और करियर ही दिखता है। इसमें बुरा भी कुछ नहीं है। बल्कि ऐसे लड़के की तो समाज और परिवार में सुनहरे अल्फाजों से तारीफ की जाती है। कॉलेज के एमबीए कोर्स की रिजल्ट शीट में ज़ैद का नाम टॉप पर है। ज़ैद का सपना अमेरिका की टॉप कंपनी ज्वाइन करने का है। इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। यह कॉन्फिडेंस उसे ही नहीं उसके प्रोफेसरों को भी है। कॉर्पोरेट जगत में ज़ैद के प्लान और पेपर अभी से चर्चा का विषय बने रहते हैं।
अच्छे अच्छे मैनेजमेंट गुरू ज़ैद के दीमाग से सीख लेते हैं। ज़ैद को इंतजार है तो सिर्फ डिग्री हाथ में आने का। इंडिया की तमाम टॉप कंपनियां ज़ैद के लिए पहले ही रेड कॉरपेट बीछा कर बैठी हैं। दोस्तों में भी ज़ैद की खास जगह है। मिलनसार, हंसमुख, हेल्पिंग, रोमांटिक लेकिन इन सबसे ज्यादा प्रेक्टिकल और भावना शून्य।
प्यार और ज़ैद इतनें दूर हैं कि उन्हें शब्दों में बयान करना मुश्किल है। प्यार की आलोचना में ज़ैद के पास न खत्म होने वाला भंडार है। प्यार करने वालों पर हंसता है। प्यार में मर मिटने वाले उसके सामने सबसे बड़े मूर्ख हैं। कुछ प्यार करने वाले दोस्त तो इसलिए दूर हो गए क्योंकि ज़ैद उन्हीं की गर्ल फ्रेंड्स, ब्वाय फ्रैंड के सामने लाजवाब तर्कों से उन्हें मूर्ख साबित कर देता है। ज़ैद के उदाहरण और तर्क सुनकर कई लोग अपने प्रेम पथ से भटक चुके हैं। बहुत ही मुश्किल होता है उसे गलत साबित करना।
सुनैना इसी कॉलेज में ज़ैद की जूनियर है। सुनैना की व्यक्तित्व अनेक उपमाओं को पीछे छोड़ देता है। चेहरे पर नूर, आंखों में चंचल चमक, माथा चौबिस घंटे ठंडा और वाणी में शहद। सुनैना बहुत सुंदर ही नहीं सुंस्कृत भी है। बेचारी की किस्मत तो देखो ज़ैद से दिल लगा बैठी। पूरा कॉलेज सुनैना के पीछे और सुनैना, ज़ैद के पीछे। सुनैना की दीवानगी के आगे मीरा की मुहब्बत भी फीकी पड़ती है। ऐसा इसलिए कि जिस दौर में लोग मोबाइल की तरह गर्ल फ्रैंड, ब्वाय फ्रैंड बदलते हैं, तो सुनैना साल भर से एक ही रट लगाए बैठी है ज़ैद, ज़ैद और ज़ैद ...। अब तो दोस्त भी खिल्ली उड़ाने लगे हैं। अच्छी बात तो सिर्फ ये है कि ज़ैद, सुनैना, गुरदिप, मन्नु, स्वाती और बैलेंससीट(एक दोस्त का निक नेम) एक ही ग्रुप में उठते-बैठते हैं। सुनैना को ये ही बहुत बड़ा सहारा है कि ज़ैद उससे प्यार करे या नहीं पर उसे अच्छा दोस्त तो समझता है। कई बार दोनों में बहस भी बहुत बुरी होती है, लेकिन सुनैना मर्द की इगो को ध्यान में रखते हुए खुद ही पीछे हट जाती है। इसे सुनैना की मुहब्बत ही कहेंगे कि वो अपनी मुहब्बत को अपने सामने झुकता हुआ नहीं देख सकती।
ज़ैद - क्यूं प्यार करती हो
सुनैना- हवा क्यूं चलती है। फूल क्यों खिलते हैं। झरनों से ही संगीत क्यों निकलता है पत्थरों से क्यों नहीं। इन सवालों का जवाब है तुम्हारें
ज़ैद- हां... Geographical reason
सुनैना- that’s right… देखा इन सबका कोई न कोई कारण है। प्यार इन सबसे ऊपर है क्यूंकि इसके पीछे कोई कारण नहीं।
ज़ैद - सच बताऊं.. तुम में हिम्मत है सुनने की?
सुनैना- (मुस्कराहट को मरोड़ते हुए) तुम... तुम प्यार समझाओगे.. यकीन नहीं होता कि तुम प्यार के बारे में भी कुछ जानते हो। चलो.. बताओ..
ज़ैद - प्यार, लव, मुहब्बत, प्रेम, इश्क ये सभी mental disorder हैं। जो अच्छे भले लोगों में पाया जाता है। जिसका पेट भरा होता है, जिसे ना future की कोई... tension है न present की तकलीफ। ऐसे ही लोगों के पीछे प्यार का भवरा मंडराता है। यह रोग हर age group के लोगों में पाया जाता है। कुछ लोग समय रहते जरूर इस रोग से मुक्ति पा लेते हैं तो कुछ बेचारे लाइफ गंवा बैठते हैं। अभी भी वक्त है be practical, संभल जाओ..। अपने career के बारे में सोचो। एक position लो फिर चाहो जिसे प्यार करों, चाहो जितने को प्यार करो। ... प्यार से position नहीं मिलती लेकिन position से प्यार जरूर मिल जाता है। और वैसे भी अच्छे से अच्छा प्यार physical attraction से खत्म हो जाता है। प्यार के गीत फिल्मों में और मुहब्बत की गज़लें किताबों में ही अच्छी लगती हैं। real life प्यार का result बिस्तर है। और इस बिस्तर को पाने के लिए प्यार में बेकार energy waste करना समझदारी नहीं है।
सुनैना- (clapping) very good .. तो प्यार तुम्हारे लिए एक बिस्तर का सुख है।
ज़ैद - नहीं मेरे लिए प्यार एक रोग है। एक बिमारी है। और बिस्तर का सुख एक physical need है तुम इन दोनों को मत मिलाओ..।
सुनैना- मैं तुम्हारे साथ सोना चाहती हूं।
ज़ैद- पर मैं तो तुम्हारे हिसाब से तुमसे से प्यार नहीं करता
सुनैना- मैं तो करती हूं।
ज़ैद- ठीक है।
सुनैना- चले।
ज़ैद- are you mad.. ये सब इतना आसान है क्या।
सुनैना- क्यूं ये भी तुम्हारे लिए कठीन हो गया।
ज़ैद- तो ..You only feel physical needs..
सुनैना- (रखकर चाटा मारती है) .. I am very sorry ... तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।

ऐसी ही कुछ बहसबाजी इन दोनों में होती रहती है। हर बार सुनैना रो कर तो कभी आंसुओं को रोककर ज़ैद का इंतजार करती है। ज़ैद भी सुनैना को अच्छी दोस्त मानता है। कई बार समझा चुका है कि किसी और से दिल लगा ले उसे कभी प्यार पर विश्वास नहीं होगा। वो प्यार को बेवकूफी समझता है।
बस यूं ही समय गुजरता है.. । ज़ैद के birthday पर गुरदीप पार्टी का प्रोग्राम बनाता है, शहर से बाहर जाना.. full day मस्ती। party जोरदार रही। खूब खाना-पीना हुआ... अब वापसी होती है। ज़ैद गाड़ी चला रहा है। सुनैना उसके साथ बैठती है। पीछे चारों दोस्त ऊंघ रहे हैं। सभी को घर जल्दी पहुंचना है। ज़ैद गाड़ी तेज चलाता है। सुनैना का ध्यान सड़क की तरफ कम और ज़ैद की तरफ ज्यादा है। अचानक एक मोड़ पर accident हो जाता है।
सभी अस्पताल में । चारों दोस्तों को हल्की चोंटे लगती हैं। ज़ैद और सुनैना गंभीर रूप से घायल है। ज़ैद को होश आता है तो वह सबसे पहले सुनैना का बारे मे पूछता है। doctor बताता है कि सुनैना खतरे से बाहर है और दूसरे रूम में है।
ज़ैद सुनैना का पास जाता है। सुनैना लेटी हुई है। चारों दोस्त उसके चारों तरफ बैठे हुए हैं। ज़ैद सुनैना के करीब जाता है। पूछता है.. सुनैना तुम कैसी हो।
सुनैना कुछ नहीं बोलती, ज़ैद की बाजू कसकर पकड़ती है। चारों दोस्तों के चेहरे पर मुस्कराहट आती है।
Doctor आते हैं। doctor ज़ैद के कंधों पर हाथ रखकर सहमते हुए कह तुम्हें सुनैना का खास ध्यान रखना होगा।
ज़ैद- मैं कुछ समझ नहीं doc.
तभी गुरमीत बोलता... ज़ैद.. अब सुनैना को काफी गंभीर चोटें आई हैं।
ज़ैदः मतलब..
Doc- इस accident में सुनैना की मेजर सर्रज़री हुई है।
ज़ैद- oh Shit ….... I am sorry सुनैना.. ये सब मेरी वजह से हुआ। you know मैं over speed मैं चल रहा था।
सुनैना- शुक्र करो हम जिंदा है। हमें अब अपनी नई लाइफ के बारे में सोचना है।
ज़ैद- हां.. तुम ठीक कह रही हो। हमें अपनी-अपनी लाइफ के बारे में सोचना होगा। मुझे अभी बहुत कुछ achieve करना है।
सुनैना, ज़ैद की पकड़ी हुई बाजू को कसके पकड़ के एकदम छोड़ देती है। ज़ैद सुनैना के पास से उठ जाता है।
वक्त गुजरता है। ज़ैद अमेरिका जाने की तैयारी में उधर सुनैना बिल्कुल टूट चुकी है। उसकी हाल काफी बिगड़ चुकी है। अब सुनैना ICU में दाखिल है। और अंतिम सांसे ले रही है। उधर ज़ैद अमेरिका जाने की फाइनल तैयारी में लगा हुआ है। तभी गुरमीत और मन्नु ज़ैद के घर पहुंचते हैं। गुरमीत, ज़ैद को बताता है कि सुनैना की हालत बहुत नाज़ुक है। लगता है, बस तेरे लिए ही उसकी सांसे अटकी पड़ी है। please चलकर सिर्फ इतना कह दो कि तुम्हें उससे प्यार है। बेचारी कम से कम चैन से मर तो सकेगी।
ज़ैद- जरूर चलता... पर क्या करूं.. यार मेरी flight है.. Please... मेरी तरफ से उससे माफी मांग लेना। मन्नु जैद की बातें सुनती है आगे बढ़ती है और रखकर एक चाटा रशीद करती है।
उधर सुनैना दम तोड़ चुकी है। अब ज़ैद के घर पर doctor फोन आता है। फोन ज़ैद की मां उठाती है। doctor उसकी मां को समझता है कि सुनैना ज़ैद से बहुत प्यार करती थी.. कम से कम आखिरी समय में फूल चढ़ाने तो आ सकता है। ज़ैद की मां उससे कहती है.. एयरपोर्ट के रास्ते में ही तो सुनैना का घर पड़ता है... वो तुम्हारी अच्छी दोस्तों में से है, तुम्हें एक बार जरूर उसके घर जाना चाहिए। वो अब इस दुनिया में नहीं रही। बतौर इंसानियत वहां जाना तुम्हारा फर्ज है।
ज़ैद और उसकी मां दोनों सुनैना के घर पहुंचते हैं। सुनैना का शव सफेद कफन में लिपटा हुआ है। ज़ैद भी उस पर फूल चढ़ा कर लोगों के बीच खड़ा हो जाता है। डाक्टर उसके करीब आता है। और उसे एक लैटर थमाता हुआ बोलता है—सुनैना ने मुझसे promise लिया था कि इन पेपर्स के बारे में तुम्हें कभी नहीं बताऊं लेकिन आज वो नहीं है तो promise भी नहीं है। ज़ैद पूछता है, क्या... किस बारे में ये पेपर्स।
डाक्टर—पढ़ लो..
ज़ैद पेपर पढ़ने लगता है। पेपर पर आंसू टपकने लगते हैं। “ पेपर में लिखा होता.. मैं (सुनैना गुप्ता d/o आर डी गुप्ता..) अपनी मर्जी और पूरे होश में ज़ैद को अपनी किडनी दान करती हूं..”